साहब कबीर ने इस भोतिक
पिरवेश में जहां पर जो देखा,उसके मुताबिक मानवमात्र को चेतना,जाग्रति व संदेश दिया है! उन्होनें अपनी उलट्वासियों के
माध्यम से मानवमात्र को एक विशेष चेतना दी है!
उनकी उलट्वासियां जो
अपनें आप में अहम स्थान रखती है उसी में एक शब्द इस तरह से है-
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
कौन सुता कौन जागे है...
लाल हमारा हम लालन के...
तन सुता ब्रह्म जागे
है...
सकल पसारा पवन का, ओर सात द्वीप नव खंड!
सोहम नाम उस पवन का, जो गरजे ब्रह्मंड!!
जात हमारी आत्मा, ओर प्राण हमारा नाम!
अलख हमारा ईष्ट है, ओर गगन हमारा गांव!!
सिर्गुण आया जीव यह, निर्गुण जाय समाय!
सुरती डोर ले चड चला, ओर सतगुरु दिया बताय!!
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
कौन सुता कौन जागे है...
लाल हमारा हम लालन के...
तन सुता ब्रह्म जागे
है...
जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, भंवर बास ना लेता है
पांचो रे चेला फिरे अकेला, अलख अलख वो करता है!-----(1)
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
जीवत जोगी माया रे
जोडीजोडी, मुआ पिछे माया मानी है
खोज्या रे खबर पडे घट
भीतर, जोगाराम जी की वाणी है!
तपत कुंड पर तपसी रे
तापे, तपसी तपस्या करता है
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
कांछ लगोटा कुछ नहिं
रखता, लंबी माला भजता है!
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
जल का मनका पात बिन पोया, सुआ हाथ का धागा है,
तीन लोक का वस्त्र
पहरिया, तो भी निरंजन नागा है!
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
एक अप्सरा आगे रे उबी(खडी), दुजी सुरमो सारे है,
तीजी अप्सरा सेज बिछावे, परणी नहीं कुंवारी है!
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
परणिया से पहले पुत्र जनमिया, मात-पिता मन भाया है,
रामानंद का भणे कबीरा, एक अखंडित ध्याया है! -----(6)
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
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