जब संतो के शब्दों को, संतो के अगम संदेश को जान लेंगे, तभी हमें क्या करना है, क्या कर रहे हैं।
इसका बोध होगा।
क्योंकि मनुष्य तन मिलने के बाद भी यदि हम आपस में प्रेम और भाईचारे से नहीं रहे।
तो हम किसी अन्य योनी में नहीं कर सकते।
मनुष्य ही मानव की सेवा कर सकता है, और यही पर, वह परमात्मा सभी में मौजूद है।
उसको खोजने के लिए कहीं भी भटकने की जरूरत नहीं है।
इसीलिए बनानाथ जी साहब ने इस तरह से कहा है।
करना होये सो करले रे साधो...
Karna Hoye So Karle Re Saadho
गायक-प्रह्लाद सिंह जी टिपानिया भजन अमृतवाणी
Singer: Prahlad Singh ji Tipaniya
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
इस तरह से चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य की योनी मिली है।
एसा संत कहते हैं। तो इस तन को पाकर हम कुछ कर लें।
क्या कर लें?
नैकी के साथ, सतज्ञान के साथ, सतनाम के साथ जुड़ जाएँ।
हर इंसान के साथ हमारा प्रेम ओर सदभाव हो।
मानव की सेवा कर लें, यही तो करना है।ओर यही सच्ची पूजा-पाठ है।
जप, तप, नियम, वृत ओर पूजा,
षठ दर्शन को गेलो(चक्कर) है।
पार-ब्रह्म को जानत नाहीं,
भुल्या भरम(अंधविश्वास) बहेलो है।_____(1)
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
इस तरह से यहाँ पर बनानाथ जी साहब स्पष्ट कहते हैं कि जब तक तु पूजा-पाठ, जप-तप, तीर्थ-वृत में उलझा रहेगा।
या षठ दर्शनों की संगती करता रहेगा, उस परमात्मा की प्राप्ति के लिए।
तो, तु भुल-भुल में अपने जीवन को गंवा देगा। क्योंकि वह परमात्मा तो सब तरफ है।
इसलिए उसका दीदार करने के लिए सबकी सेवा कर ले।
परन्तु हमारे मन में इस तरह का विश्वास है, की वह परमात्मा तो सतलोक में है, वह परमात्मा अमरलोक(बेकुंठ) में है।
जबकि सच्चा परमात्मा तो, हर मानवमात्र के अंदर है।
इसीलिए उन्होंने कहा है...
कोई कहे हरी(भगवान) बसे बेकुंठा,
कोई गौलोक कहेलो (कहता) है।
कोई कहे शिव नगरी में साहब,
युग-युग हाथ बहेलो है।_____(2)
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
उस परमात्मा के निवास के बारे में इस प्रकार की भावना रही है, कि वह बैकुंठ में, गौलोक में, सतलोक में है।
परंतु वे सब लोक तो यहीं पर है, जहां संतो का सानिध्य है, सत्संग है।
जहाँ पर सत्य का साथ है, वही तो सतलोक है।
इसीलिए उनकी संगती करने की जरूरत है। ओर इस प्रकार कि स्थिति, ओर इस प्रकारका बोध कराने के लिए यदि कोई कहता है कि परमात्मा अमरलोक में है, गौलोक में है।
तो यह समझिए कि वह अज्ञानी, नासमझ है।
क्योंकि संतो ने कहा है। इसीलिए बनानाथ जी कहते है
नासमझ(मूर्ख) हरि दूर बतावे,
कोई समझ्या(ज्ञानी) साथ कहेलो है
सतगुरु सेण(समझ) अमोलक दिन्ही,
हरदम हरी को गेलो(साथ) है।_____(3)
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
देखिएगा, यहां पर बनानाथ जी साहब स्पष्ट कहते हैं कि अज्ञानी लोग हरि को दूर बताते हैं और ज्ञानी हमेशा उस परमात्मा को साथ बताता है।
अर्थात, उस परमात्मा को,उस वाहेगुरु,उस अल्लाह को जो दूर बताते है, वो नासमझ हैं।
परंतु, वो कहाँ पर है? सतगुरु सैण(समझ) अमोलक दीन्ही, ओर हरदम हरी को गेलो(साथ) है।
वो तो यह कह रहे हैं कि उसका गेला(साथ) तो हरदम सभी के साथ है।
परंतु इस प्रकार की सैण, इस प्रकार का इशारा, इस प्रकार की समझ, इस प्रकार कि परख हमें सच्चे सतगुरु से मिलती है इसलिए ऐसी अमोलक समझ को लेकर जो सब घट में जो व्यापक है। उस परमात्मा के साथ जुड़ने का प्रयास करें। उसी की सेवा करने की बात करें। उसी की पूजा-पाठ, पूजा-अर्चना करें।इसीलिए यहाँ पर बनानाथ जी साहब ने इस तरह से कहा है।
जियाराम गुरु पूरा महाने मिल गया,
अजपा जाप जपेलो(सुमिरण) है।
कहे बनानाथ सुनो भाई साधो,
म्हारा सतगुरु जी को हेलो(कहना) है।_____(4)
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
इस तरह से बनानाथ जी साहब ने साफ शब्दों में कहा है कि सच्चे गुरु का संदेश परख ओर पारख का भेद यही है कि,वो परमात्मा सभी में व्यापक है, सभी में विद्यमान है।
इसीलिए उसकी खोज यही पर कर लें। इसलिए क्या करना है?
यही(भजन) करना है।
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
इसका बोध होगा।
क्योंकि मनुष्य तन मिलने के बाद भी यदि हम आपस में प्रेम और भाईचारे से नहीं रहे।
तो हम किसी अन्य योनी में नहीं कर सकते।
मनुष्य ही मानव की सेवा कर सकता है, और यही पर, वह परमात्मा सभी में मौजूद है।
उसको खोजने के लिए कहीं भी भटकने की जरूरत नहीं है।
इसीलिए बनानाथ जी साहब ने इस तरह से कहा है।
करना होये सो करले रे साधो...
Karna Hoye So Karle Re Saadho
गायक-प्रह्लाद सिंह जी टिपानिया भजन अमृतवाणी
Singer: Prahlad Singh ji Tipaniya
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
इस तरह से चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य की योनी मिली है।
एसा संत कहते हैं। तो इस तन को पाकर हम कुछ कर लें।
क्या कर लें?
नैकी के साथ, सतज्ञान के साथ, सतनाम के साथ जुड़ जाएँ।
हर इंसान के साथ हमारा प्रेम ओर सदभाव हो।
मानव की सेवा कर लें, यही तो करना है।ओर यही सच्ची पूजा-पाठ है।
जप, तप, नियम, वृत ओर पूजा,
षठ दर्शन को गेलो(चक्कर) है।
पार-ब्रह्म को जानत नाहीं,
भुल्या भरम(अंधविश्वास) बहेलो है।_____(1)
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
इस तरह से यहाँ पर बनानाथ जी साहब स्पष्ट कहते हैं कि जब तक तु पूजा-पाठ, जप-तप, तीर्थ-वृत में उलझा रहेगा।
या षठ दर्शनों की संगती करता रहेगा, उस परमात्मा की प्राप्ति के लिए।
तो, तु भुल-भुल में अपने जीवन को गंवा देगा। क्योंकि वह परमात्मा तो सब तरफ है।
इसलिए उसका दीदार करने के लिए सबकी सेवा कर ले।
परन्तु हमारे मन में इस तरह का विश्वास है, की वह परमात्मा तो सतलोक में है, वह परमात्मा अमरलोक(बेकुंठ) में है।
जबकि सच्चा परमात्मा तो, हर मानवमात्र के अंदर है।
इसीलिए उन्होंने कहा है...
कोई कहे हरी(भगवान) बसे बेकुंठा,
कोई गौलोक कहेलो (कहता) है।
कोई कहे शिव नगरी में साहब,
युग-युग हाथ बहेलो है।_____(2)
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
उस परमात्मा के निवास के बारे में इस प्रकार की भावना रही है, कि वह बैकुंठ में, गौलोक में, सतलोक में है।
परंतु वे सब लोक तो यहीं पर है, जहां संतो का सानिध्य है, सत्संग है।
जहाँ पर सत्य का साथ है, वही तो सतलोक है।
इसीलिए उनकी संगती करने की जरूरत है। ओर इस प्रकार कि स्थिति, ओर इस प्रकारका बोध कराने के लिए यदि कोई कहता है कि परमात्मा अमरलोक में है, गौलोक में है।
तो यह समझिए कि वह अज्ञानी, नासमझ है।
क्योंकि संतो ने कहा है। इसीलिए बनानाथ जी कहते है
नासमझ(मूर्ख) हरि दूर बतावे,
कोई समझ्या(ज्ञानी) साथ कहेलो है
सतगुरु सेण(समझ) अमोलक दिन्ही,
हरदम हरी को गेलो(साथ) है।_____(3)
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
देखिएगा, यहां पर बनानाथ जी साहब स्पष्ट कहते हैं कि अज्ञानी लोग हरि को दूर बताते हैं और ज्ञानी हमेशा उस परमात्मा को साथ बताता है।
अर्थात, उस परमात्मा को,उस वाहेगुरु,उस अल्लाह को जो दूर बताते है, वो नासमझ हैं।
परंतु, वो कहाँ पर है? सतगुरु सैण(समझ) अमोलक दीन्ही, ओर हरदम हरी को गेलो(साथ) है।
वो तो यह कह रहे हैं कि उसका गेला(साथ) तो हरदम सभी के साथ है।
परंतु इस प्रकार की सैण, इस प्रकार का इशारा, इस प्रकार की समझ, इस प्रकार कि परख हमें सच्चे सतगुरु से मिलती है इसलिए ऐसी अमोलक समझ को लेकर जो सब घट में जो व्यापक है। उस परमात्मा के साथ जुड़ने का प्रयास करें। उसी की सेवा करने की बात करें। उसी की पूजा-पाठ, पूजा-अर्चना करें।इसीलिए यहाँ पर बनानाथ जी साहब ने इस तरह से कहा है।
जियाराम गुरु पूरा महाने मिल गया,
अजपा जाप जपेलो(सुमिरण) है।
कहे बनानाथ सुनो भाई साधो,
म्हारा सतगुरु जी को हेलो(कहना) है।_____(4)
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
इस तरह से बनानाथ जी साहब ने साफ शब्दों में कहा है कि सच्चे गुरु का संदेश परख ओर पारख का भेद यही है कि,वो परमात्मा सभी में व्यापक है, सभी में विद्यमान है।
इसीलिए उसकी खोज यही पर कर लें। इसलिए क्या करना है?
यही(भजन) करना है।
करना होये सो करले रे साधो...
मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है...
लख चौरासी में भटकत भटकत,
अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो...
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