हंस मिल्या से हंस होइ रे - प्रह्लाद सिंह जी टिपानिया भजन
Hans Milya Se Hans Hoi Re by Prahlad Singh ji Tipaniya
पाँच नाम भव सागर का कहिये, या से मुक्ति ना होइ रे।
यो कुल छोड़ मिलो सतगुरू से, सहजे मुक्ति होइ रे।।
जो तू जोड़े रे बेठ बूगला का, हंसो कहेगा ना कोई रे।।
हंस मिल्या से हंस होइ रे।।
ई हंसा है क्षीर कूप रा, नीर कूप वहां नाई रे।
नीर कूप ममता को रे पाणी, इता दिया तो हंस होइ रे।।_____(1)
दस अवतार शठ दर्शन कहिये, वेद भणेगा नर सोइ रे।
वरण छत्तीसा शास्त्र गीता , इता दिया तो हंस होइ रे।।_____(2)
मदवा रे होय नर बैठो मंदिर में, तिरिया की गम नाई रे।
देखण का साधु बड़ा मठधारी, वाको ब्रह्म ठिकाणे नाई रे।।_____(3)
तीन लोक पर बैठो यमराजा(निरंजन), बेठो बाण संजोई रे।
समझ विचार चड्यो है हँसराजा, काल दियो है अब रोई रे।।_____(4)
ई हंसा है अमरलोक रा, आवागमन में नाई रे।
कहे कबीर सुणो भाई साधो, सदगुरु सैण लखाई रे।।_____(5)
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