Wednesday, July 15, 2020

तुम देखो लोगों भूले भुलैया का तमाशा Tum Dekho Logo Bhule by Prahlad Singh ji Tipaniya


तुम देखो लोगों भूले... भुलैया का तमाशा...
Tum Dekho Logo Bhule Bhulaiyaa Ka Tamasha 
गायक-प्रह्लाद सिंह जी टिपानिया भजन 
Singer: Prahlad Singh ji Tipaniya 

हमने मानव जीवन धारण करके इस भौतिकता में
 अनेकानेक विषय विकार और माया मोह के बंधन में अपने आप को बांध रखा है, जबकि भोग विलास और झूठी माया के संचय में लगा कर के हम अपने सद्गुरु से अपने अंदर की आवाज से दूर हो गए हैं।

और स्थूल शरीर के संबंध रखने वालों से हमारा नाता जोड़ रखा है
जबकि यह तो केवल मरघट तक के ही साथी होते हैं
ओर हंस अकेला जाता है, इसीलिए साहेब कबीर कहते हैं।

यह तन कच्चा कुंभ है, और लिए फिरे थे साथ।
ठनका लागा टूट गया, कछु न आया हाथ।।

हाड़(हड्डी) जले लकड़ी जले, ओर जले जलावनहार।
कोतुकहारा भी जले, ओर किससे करुँ पुकार।।

तुम देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा... ×2


नौ दस मास गर्भ के अंदर,
करता नर्क निवासा...×2

बाहर आकर भुल गया,
तुम चाहो भोग विलासा..._____(1)

भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...

खट्टा मीठा भोजन चाहिए,
वस्त्र चाहिये खासा...×2

यम के दूत पकड़ ले जावे
डाल गले में फांसी..._____(2)

भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...

कोड़ी कोड़ी माया जोडी,
जोड़ी है लाख पचासा...×2

अंत समय कुछ काम न आवे
 खाली हाथ तु जाता..._____(3)

भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...

बहन झुरे तेरी बार त्योहारा
माँई झुरे दस मासा...×2

तैरह दिन तक तिरीया(पत्नि) रोवे,
फिर करे घर वासा..._____(4)

भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...

डेली तक तिरीया (पत्नि ) का नाता,
गलियों तक तेरी माता...×2

मरघट तक सब मित्र संगाती (साथी),
हँस अकेला जाता..._____(5)

भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...

हाड़ (हड्डी) जले ज्यों लकड़ी,
केश जले ज्यों घांसा(घांस)...×2

सोने जैसी काया जलत है,
कोई ना आवे तेरे पास..._____(6)

तुम देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...

लाख चौरासी में भटकत भटकत,
मिटी न मन की त्रासा...×2

कहे कबीर सुनो भाई साधो,
यह दुनिया की रासा (रीत)..._____(7)

भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...

We have tied ourselves to this materiality in the bondage of disorder and illusion of Maya by holding human life, while we have become far removed from our Sadguru with our inner voice, by indulging in indulgence of luxury and false illusion.

And we have connected with those who belong to the gross body, Whereas these are only companions till the end.
And Hans goes alone, that is why Saheb Kabir says.

This body is raw Pot of clay, and was accompanied.
They were broken by touching, nothing came in hand.

Burning wood, burning burns, and burning fire.
Kotukhara also burns, and whom should I call?

You see people have forgotten...
Maze pageant...×2

Nine ten months inside the womb,
Does Hell abode...×2

Forgot to come out,
You want enjoyment..._____(1)

O Brother, people have forgotten...
The spectacle of the maze...

Delicious, sweet food is needed,
Clothing Needed Much...×2

Take yama's messenger
Put hanging in the neck..._____(2)

O Brother, people have forgotten...
The spectacle of the maze...

After added little little money
Made so much...×2

No work at the end
 You go empty handed..._____(3)

O Brother, people have forgotten..
The spectacle of the maze...

Sister cries on only festival's
Mother cries only for Ten month's...×2

Tiriya (wife) cries till Thirteen days of thr death,
And Resurrect home..._____(4)

O Brother, people have forgotten...
The spectacle of the maze...

Tiriya (wife) ties to door,
By the streets your mother...×2

All friends, sangati (partner) till the Crematorium 
This soul Goes Alone..._____(5)

O Brother, people have forgotten..
The spectacle of the maze...

Burning of bones, as wood
Hair burns like piercing...×2

A body like gold is burning,
No one has come to you_____(6)

You see people have forgotten...
The spectacle of the maze...

Wandering in eighty fours lacs life,
Didn't finsih the need of this Greedy mind...×2

Say Kabir, listen seekers,
This world's rasa (ritual)_____(7)

O Brother, people have forgotten..

The spectacle of the maze...×2

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