हमें इस मानव जीवन को फोकट मान ओर गुमान में नहीं खोना है! क्योंकि यह शरीर भी भोतिक है, इसिलिये इन माया व काया का अहंकर मत कर क्योंकि यह जीवन की रंगीनीयां तो समाप्त हो जायेगी!
Monday, August 31, 2020
मत कर मान गुमान by Prahlad Singh Ji Tipaniya
हमें इस मानव जीवन को फोकट मान ओर गुमान में नहीं खोना है! क्योंकि यह शरीर भी भोतिक है, इसिलिये इन माया व काया का अहंकर मत कर क्योंकि यह जीवन की रंगीनीयां तो समाप्त हो जायेगी!
घणो रिझायो वो लाड़ली ने by Prahlad Singh Ji Tipaniya
Saturday, August 22, 2020
वो सुमिरण एक न्यारा रे by Prahlad Singh ji Tipaniya
Monday, August 17, 2020
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती... by Prahlad Singh Ji Tipaniya
साहब कबीर ने इस भोतिक
पिरवेश में जहां पर जो देखा,उसके मुताबिक मानवमात्र को चेतना,जाग्रति व संदेश दिया है! उन्होनें अपनी उलट्वासियों के
माध्यम से मानवमात्र को एक विशेष चेतना दी है!
उनकी उलट्वासियां जो
अपनें आप में अहम स्थान रखती है उसी में एक शब्द इस तरह से है-
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
कौन सुता कौन जागे है...
लाल हमारा हम लालन के...
तन सुता ब्रह्म जागे
है...
सकल पसारा पवन का, ओर सात द्वीप नव खंड!
सोहम नाम उस पवन का, जो गरजे ब्रह्मंड!!
जात हमारी आत्मा, ओर प्राण हमारा नाम!
अलख हमारा ईष्ट है, ओर गगन हमारा गांव!!
सिर्गुण आया जीव यह, निर्गुण जाय समाय!
सुरती डोर ले चड चला, ओर सतगुरु दिया बताय!!
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
कौन सुता कौन जागे है...
लाल हमारा हम लालन के...
तन सुता ब्रह्म जागे
है...
जल बिच कमल, कमल बिच कलियां, भंवर बास ना लेता है
पांचो रे चेला फिरे अकेला, अलख अलख वो करता है!-----(1)
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
जीवत जोगी माया रे
जोडीजोडी, मुआ पिछे माया मानी है
खोज्या रे खबर पडे घट
भीतर, जोगाराम जी की वाणी है!
तपत कुंड पर तपसी रे
तापे, तपसी तपस्या करता है
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
कांछ लगोटा कुछ नहिं
रखता, लंबी माला भजता है!
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
जल का मनका पात बिन पोया, सुआ हाथ का धागा है,
तीन लोक का वस्त्र
पहरिया, तो भी निरंजन नागा है!
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
एक अप्सरा आगे रे उबी(खडी), दुजी सुरमो सारे है,
तीजी अप्सरा सेज बिछावे, परणी नहीं कुंवारी है!
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
परणिया से पहले पुत्र जनमिया, मात-पिता मन भाया है,
रामानंद का भणे कबीरा, एक अखंडित ध्याया है! -----(6)
शुन्य घर शहर, शहर घर बस्ती...
Saturday, August 15, 2020
म्हाने संत संगत प्यारी लागे हे माय by Prahlad Singh Ji Tipaniya
म्हाने संत संगत प्यारी लागे हे माय
by Prahlad Singh Ji Tipaniya
म्हाने संत संगत प्यारी लागे हे माय
म्हारो मन लाग्यो इणा भजना में
महल अटरिया म्हारे नहीं सुहावे रे...
म्हारे जंगल की कुटिया प्यारी लागे है माय-----(1)
हीरा जवाहरात म्हारे नहीं सुहावे रे
म्हारे फुलों की माला प्यारी लागे है माय------(2)
खीर खाण्ड का भोजन म्हाने नहीं सुहावे रे
म्हारे शब्दा री खीर प्यारी लागे है माय------(3)
मीरा को प्रभु गुरधर मिल गया रे...
गुरु चरणों की बलिहारी है माय------(4)
वो सुमिरण एक न्यारा है Wo Sumiran Ek Nyara Hai Kabir Bhajan Lyrics
सुमिरण की सुध युं करो , ज्यों गागर पणिहार हाले डोले सुरत में , कहे कबीर विचार सुमिरण सुरती साध के , मुख से कछु नहीं बोल तेरे बाहर के पट दे...
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जब संतो के शब्दों को, संतो के अगम संदेश को जान लेंगे, तभी हमें क्या करना है, क्या कर रहे हैं। इसका बोध होगा। क्योंकि मनुष्य तन मिलने ...