संतों के शब्दों में अनेक महापुरुष हुए सभी का संदेश शब्दों के जरिए मानवमात्र को चेतना प्रदान करना है। परंतु उस भूमिका पर जाने के बाद भी हमें एहसास होता है कि वहां पर न किसी प्रकार का राग है,न द्वेष है, ओर ना ही वह किसी प्रकार की स्थिति को निरूपित होता है। वहाँ पर बनानाथ जी ने, भवानीनाथ जी ने अनेक प्रकार से समझाया है। इस भजन में भवानीनाथ जी ने कहा है।
बिना चंदा रे, बिना भान Bina Chanda Re Bina Bhan गायक-प्रह्लाद सिंह जी टिपानिया भजन अमृतवाणी Singer: Prahlad Singh ji Tipaniya जल में बसे कुमुदिनी, चंदा बसे आकाश। ज्यो जिसके हिरदे बसे, वो ही उसी के पास।। बिन पावन का पंथ है, बिन बस्ती का देस। बिना पिण्ड का पुरूष है, कहे कबीर संदेस।। बिना चंदा रे, बिना भान, सूरज बिना होया उजियारा रे। परलोक मत जाओ हेली, निरख लो यहीं उजियारा है। हैली म्हारी, गूँगों गावे है अब राग, बेरो(बहरा) अब सुणवा(सूनने) ने लागो है। पांगलीयो(लूला) नाचे घणो नाच ,हैली, आन्दलियो(अंधा) नरखण(देखना) लागो है।_____(1) हैली म्हारी, बिना चंदा रे, बिना भान, सूरज बिना होया उजियारा रे। परलोक मत जाओ हेली, निरख लो यहीं उजियारा है। हैली म्हारी, गगन मण्डल के बीच, तापे एक जोगी मतवाला रे। नहीं अग्नि ना भभूत हेली, नहीं कोई तापण वालो है।_____(2) हैली म्हारी, बिना चंदा रे, बिना भान, सूरज बिना होया उजियारा रे। परलोक मत जाओ हेली, निरख लो यहीं उजियारा है। हैली म्हारी, शून्य शिखर के बीच, मच्यो एक झगड़ो भारी है। नहीं कायर को वहाँ काम हैली, कायर को कई पतियारो है।_____(3) हैली म्हारी, बिना चंदा रे, बिना भान, सूरज बिना होया उजियारा रे। परलोक मत जाओ हेली, निरख लो यहीं उजियारा है। हैली म्हारी, गावे गुलाबीदास, खुल्या म्हारा हिरदा(हृदय) का ताला है। बोल्या भवानीनाथ हैली, हुआ म्हारा घट उजियारा है।_____(4) हैली म्हारी, बिना चंदा रे, बिना भान, सूरज बिना होया उजियारा रे। परलोक मत जाओ हेली, निरख लो यहीं उजियारा है।
बिना सूरज ओर चांद के प्रकाश हो, एसी भूमिका पर जाने पर उसे सभी ओर
वही(भगवान) दृष्टिगोचर होता है। परन्तु यह तभी संभव है, जब हमें सतगुरु के द्वारा उस अमृतमयी धारा का पान करवाया जाए। और जीवमात्र की प्यास बुझाई जाये। यहाँ पर सतगुरु कबीर ने इस तरह से कहा है।
जब संतो के शब्दों को, संतो के अगम संदेश को जान लेंगे, तभी हमें क्या करना है, क्या कर रहे हैं। इसका बोध होगा। क्योंकि मनुष्य तन मिलने के बाद भी यदि हम आपस में प्रेम और भाईचारे से नहीं रहे। तो हम किसी अन्य योनी में नहीं कर सकते। मनुष्य ही मानव की सेवा कर सकता है, और यही पर, वह परमात्मा सभी में मौजूद है। उसको खोजने के लिए कहीं भी भटकने की जरूरत नहीं है। इसीलिए बनानाथ जी साहब ने इस तरह से कहा है। करना होये सो करले रे साधो... Karna Hoye So Karle Re Saadho गायक-प्रह्लाद सिंह जी टिपानिया भजन अमृतवाणी Singer: Prahlad Singh ji Tipaniya करना होये सो करले रे साधो... मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है... लख चौरासी में भटकत भटकत, अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है।
करना होये सो करले रे साधो... इस तरह से चौरासी लाख योनियों में भटकने के बाद मनुष्य की योनी मिली है। एसा संत कहते हैं। तो इस तन को पाकर हम कुछ कर लें। क्या कर लें? नैकी के साथ, सतज्ञान के साथ, सतनाम के साथ जुड़ जाएँ। हर इंसान के साथ हमारा प्रेम ओर सदभाव हो। मानव की सेवा कर लें, यही तो करना है।ओर यही सच्ची पूजा-पाठ है। जप, तप, नियम, वृत ओर पूजा, षठ दर्शन को गेलो(चक्कर) है। पार-ब्रह्म को जानत नाहीं, भुल्या भरम(अंधविश्वास) बहेलो है।_____(1) करना होये सो करले रे साधो... मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है... लख चौरासी में भटकत भटकत, अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है। करना होये सो करले रे साधो... इस तरह से यहाँ पर बनानाथ जी साहब स्पष्ट कहते हैं कि जब तक तु पूजा-पाठ, जप-तप, तीर्थ-वृत में उलझा रहेगा। या षठ दर्शनों की संगती करता रहेगा, उस परमात्मा की प्राप्ति के लिए। तो, तु भुल-भुल में अपने जीवन को गंवा देगा। क्योंकि वह परमात्मा तो सब तरफ है। इसलिए उसका दीदार करने के लिए सबकी सेवा कर ले। परन्तु हमारे मन में इस तरह का विश्वास है, की वह परमात्मा तो सतलोक में है, वह परमात्मा अमरलोक(बेकुंठ) में है। जबकि सच्चा परमात्मा तो, हर मानवमात्र के अंदर है। इसीलिए उन्होंने कहा है... कोई कहे हरी(भगवान) बसे बेकुंठा, कोई गौलोक कहेलो (कहता) है। कोई कहे शिव नगरी में साहब, युग-युग हाथ बहेलो है।_____(2) करना होये सो करले रे साधो... मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है... लख चौरासी में भटकत भटकत, अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है। करना होये सो करले रे साधो... उस परमात्मा के निवास के बारे में इस प्रकार की भावना रही है, कि वह बैकुंठ में, गौलोक में, सतलोक में है। परंतु वे सब लोक तो यहीं पर है, जहां संतो का सानिध्य है, सत्संग है। जहाँ पर सत्य का साथ है, वही तो सतलोक है। इसीलिए उनकी संगती करने की जरूरत है। ओर इस प्रकार कि स्थिति, ओर इस प्रकारका बोध कराने के लिए यदि कोई कहता है कि परमात्मा अमरलोक में है, गौलोक में है। तो यह समझिए कि वह अज्ञानी, नासमझ है।
क्योंकि संतो ने कहा है। इसीलिए बनानाथ जी कहते है नासमझ(मूर्ख) हरि दूर बतावे, कोई समझ्या(ज्ञानी) साथ कहेलो है सतगुरु सेण(समझ) अमोलक दिन्ही, हरदम हरी को गेलो(साथ) है।_____(3) करना होये सो करले रे साधो... मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है... लख चौरासी में भटकत भटकत, अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है। करना होये सो करले रे साधो... देखिएगा, यहां पर बनानाथ जी साहब स्पष्ट कहते हैं कि अज्ञानी लोग हरि को दूर बताते हैं और ज्ञानी हमेशा उस परमात्मा को साथ बताता है। अर्थात, उस परमात्मा को,उस वाहेगुरु,उस अल्लाह को जो दूर बताते है, वो नासमझ हैं। परंतु, वो कहाँ पर है? सतगुरु सैण(समझ) अमोलक दीन्ही, ओर हरदम हरी को गेलो(साथ) है। वो तो यह कह रहे हैं कि उसका गेला(साथ) तो हरदम सभी के साथ है। परंतु इस प्रकार की सैण, इस प्रकार का इशारा, इस प्रकार की समझ, इस प्रकार कि परख हमें सच्चे सतगुरु से मिलती है इसलिए ऐसी अमोलक समझ को लेकर जो सब घट में जो व्यापक है। उस परमात्मा के साथ जुड़ने का प्रयास करें। उसी की सेवा करने की बात करें। उसी की पूजा-पाठ, पूजा-अर्चना करें।इसीलिए यहाँ पर बनानाथ जी साहब ने इस तरह से कहा है। जियाराम गुरु पूरा महाने मिल गया, अजपा जाप जपेलो(सुमिरण) है। कहे बनानाथ सुनो भाई साधो, म्हारा सतगुरु जी को हेलो(कहना) है।_____(4) करना होये सो करले रे साधो... मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है... लख चौरासी में भटकत भटकत, अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है। करना होये सो करले रे साधो... इस तरह से बनानाथ जी साहब ने साफ शब्दों में कहा है कि सच्चे गुरु का संदेश परख ओर पारख का भेद यही है कि,वो परमात्मा सभी में व्यापक है, सभी में विद्यमान है। इसीलिए उसकी खोज यही पर कर लें। इसलिए क्या करना है? यही(भजन) करना है। करना होये सो करले रे साधो... मनक(मनुष्य) जनम दुहेलो(कठिन) है... लख चौरासी में भटकत भटकत, अबके मिल्यो महेलों(अवसर) है। करना होये सो करले रे साधो...
अनेकानेक विषय विकार और माया मोह के बंधन में अपने आप को बांध रखा है, जबकि भोग विलास और झूठी माया के संचय में लगा कर के हम अपने सद्गुरु से अपने अंदर की आवाज से दूर हो गए हैं।
और स्थूल शरीर के संबंध रखने वालों से हमारा नाता जोड़ रखा है
जबकि यह तो केवल मरघट तक के ही साथी होते हैं
ओर हंस अकेला जाता है, इसीलिए साहेब कबीर कहते हैं।
यह तन कच्चा कुंभ है, और लिए फिरे थे साथ।
ठनका लागा टूट गया, कछु न आया हाथ।।
हाड़(हड्डी) जले लकड़ी जले, ओर जले जलावनहार।
कोतुकहारा भी जले, ओर किससे करुँ पुकार।।
तुम देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा... ×2
नौ दस मास गर्भ के अंदर,
करता नर्क निवासा...×2
बाहर आकर भुल गया,
तुम चाहो भोग विलासा..._____(1)
भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...
खट्टा मीठा भोजन चाहिए,
वस्त्र चाहिये खासा...×2
यम के दूत पकड़ ले जावे
डाल गले में फांसी..._____(2)
भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...
कोड़ी कोड़ी माया जोडी,
जोड़ी है लाख पचासा...×2
अंत समय कुछ काम न आवे
खाली हाथ तु जाता..._____(3)
भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...
बहन झुरे तेरी बार त्योहारा
माँई झुरे दस मासा...×2
तैरह दिन तक तिरीया(पत्नि) रोवे,
फिर करे घर वासा..._____(4)
भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...
डेली तक तिरीया (पत्नि ) का नाता,
गलियों तक तेरी माता...×2
मरघट तक सब मित्र संगाती (साथी),
हँस अकेला जाता..._____(5)
भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...
हाड़ (हड्डी) जले ज्यों लकड़ी,
केश जले ज्यों घांसा(घांस)...×2
सोने जैसी काया जलत है,
कोई ना आवे तेरे पास..._____(6)
तुम देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...
लाख चौरासी में भटकत भटकत,
मिटी न मन की त्रासा...×2
कहे कबीर सुनो भाई साधो,
यह दुनिया की रासा (रीत)..._____(7)
भैया देखो लोगों भूले...
भुलैया का तमाशा...
We have tied ourselves to this materiality in the bondage of disorder and illusion of Maya by holding human life, while we have become far removed from our Sadguru with our inner voice, by indulging in indulgence of luxury and false illusion.
And we have connected with those who belong to the gross body, Whereas these are only companions till the end.
And Hans goes alone, that is why Saheb Kabir says. This body is raw Pot of clay, and was accompanied. They were broken by touching, nothing came in hand. Burning wood, burning burns, and burning fire. Kotukhara also burns, and whom should I call? You see people have forgotten... Maze pageant...×2 Nine ten months inside the womb, Does Hell abode...×2 Forgot to come out, You want enjoyment..._____(1) O Brother, people have forgotten... The spectacle of the maze... Delicious, sweet food is needed, Clothing Needed Much...×2 Take yama's messenger Put hanging in the neck..._____(2) O Brother, people have forgotten... The spectacle of the maze... After added little little money Made so much...×2 No work at the end You go empty handed..._____(3) O Brother, people have forgotten.. The spectacle of the maze... Sister cries on only festival's Mother cries only for Ten month's...×2 Tiriya (wife) cries till Thirteen days of thr death, And Resurrect home..._____(4) O Brother, people have forgotten... The spectacle of the maze... Tiriya (wife) ties to door, By the streets your mother...×2 All friends, sangati (partner) till the Crematorium This soul Goes Alone..._____(5) O Brother, people have forgotten.. The spectacle of the maze... Burning of bones, as wood Hair burns like piercing...×2 A body like gold is burning, No one has come to you_____(6) You see people have forgotten... The spectacle of the maze... Wandering in eighty fours lacs life, Didn't finsih the need of this Greedy mind...×2 Say Kabir, listen seekers, This world's rasa (ritual)_____(7) O Brother, people have forgotten..
वर्ष 2007 के इस गुरु महोत्सव पर्व पर आप सबका स्वागत है।
सदगुरु कबीर स्मारक शोध सेवा संस्थान के तत्वाधान में गुरु महोत्सव पर्व मनाया जा रहा है।
समस्त गुरुजनों के प्रति हमारी श्रद्धा सुमन।
गुरु वंदना के रूप में, साहैब कैसेट, के मार्फ़त प्रस्तुत करना चाहते है।
ओर इसी पर्व पर गुरु वंदना के शब्द आपके प्रति समर्पित है।
जिसमें वो गुरु जी रुहानियत से जोड़ते है और मानवमात्र को, ओर अपने अंदर की कटुता को तोड़ने का काम करते है और कटुता को दूर करते है।
इसी कार्यक्रम में साहब कैसेट के मार्फ़त यह गुरु वंदना प्रस्तुत है,
भजन लाख लाख वंदन
गायक प्रहलाद सिंह जी टिपानिया
Laakh Laakh vandan
Singer prahlad singh ji tipaniya
ध्यानमूलं गुरुमूर्ति, पूजमूलं गुरूपदं।
मंत्रमुलं गुरूवाक्यं, ओर मोक्षमुलं गुरुकृपा।।
ओर जब गुरु की कृपा होगी तो तब क्या होगा?
गुरु बिन ज्ञान न उपजे, ओर गुरु बिन मिले न मोक्ष।
गुरु बिन लखे कोई सत्य को, ओर गुरु बिन मिटे न दोष।।
हमारे जीवन की कमियां ओर खामिया जब तक सच्चे सद्गुरु नहीं मिले, तब तक दूर होना संभव नहीं है।
ओर सच्चे सदगुरु कौन?
जो सत का भाव हर मानवमात्र के प्रति प्रवाहित करे, इसीलिए तो सतगुरु कबीर ने कहा है,
सतगुरु तो सतभाव है , जो अस भेद बताए।
धन्य भाग्य धन्य शीश जैसे, जो ऐसी सुधी पाए।।
जब ऐसे सदगुरू मिल जाए, ओर जो ऐसी सुधी पा लें, ऐसी समझ, परख व पारख को अपने जीवन में आत्मसाध कर लें, तो ही हमारा जीवन धन्य होगा।
परंतु, गुरु इस संसार में बहुत हैं। जो अनेक प्रकार से जीवों को दूर करने का कार्य भी करते है।
जबकि गुरु का काम, संतो का काम, मिलाने का है, जोड़ने का है, तोड़ने का नहीं, एक दूसरे से दूर करने का नहीं।
क्योंकि दाता ओर नदियां एक समान होती है, ओर यही रहनी ओर गहनी गुरु की होती है, इसलिए तो सदगुरु कबीर ने कहा है,
दाता नदियाँ एक सम, ओर सबका काहू को देत।
हाथ कुम्भ जिसका जैसा, वो वेसा ही फल देत।।
हमारा भी यह दायित्व होता है कि हम हमारी चूक, कमियों ओर खामियों को दूर करें।
इसलिए कहा है
गुरु बेचारे क्या करे, ज्यों शिष्य माही चूक।
भावे ही पर मून्दिये, जैसे बाँस बजाई फुंक।।
इसलिए गुरु वो है जो गम के सागर है, बोध के सागर है, ओर हर इंसान के जीवन को संवारने के काम करते हैं।
इसलिए हमारी चौरासी जो चार उंगली की है, मेरे दृष्टिकोण से।
उससे मुक्त करने का काम सच्चे सतगुरु का होता है। ओर हम आज के इस गुरु पर्व पर, गुरु वंदना के मार्फत आज के इस गुरु महोत्सव के कार्यक्रम की शुरुआत करें।
लाख-लाख वंदन तमने, कोटि-कोटि वंदन।-----×2
गुरु गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन।।-----×2
क्यों लाख-लाख वंदन, हम तो अज्ञानी जीव है, गुरु की शरण में आये है, ओर गुरु हमारे अंदर के अज्ञान को दूर करेंगे, ओर ज्ञान का दीपक प्रज्वलित करेंगे।
इसलिए कहा है,
अज्ञान जीवड़ो गुरुजी, चरणों में आयो।-----×2
ज्ञान को दीपक गुरुजी, जलाई हो दीजो।।------(1)
गुरु गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन।।-----×2
लाख-लाख वंदन तमने, कोटि-कोटि वंदन।
गुरु गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन।।-----×2
चौरासी लाख योनी में भटक कर जब जीव, गुरु की शरण में आता है तो निश्चित ही वो चौरासी लाख योनी को काटते हैं, जो विषय वासना की है। इसीलिये,
लख हो चौरासी में जीवड़ो, भटकी ने आयो।-----×2
अबकी चौरासी गुरुजी, छुड़ाई हो दीजो।।------(2)
गुरु गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन।।-----×2
लाख-लाख वंदन तमने, कोटि-कोटि वंदन।
गुरु गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन।।-----×2
ईसलिये सच्चे सतगुरु हर इंसान के, हर मानवमात्र के जीवन को संवारने का काम करते है इसलिये तो यह विनती ओर यह प्रार्थना है इस सेवक कि,
डूबत-डूबत हो गुरूजी, आपने बचाया।-----×2
अबको जीवन हो गुरुजी, सँवारी हो दीजो।।------(3)
गुरु गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन।।-----×2
लाख-लाख वंदन तमने, कोटि-कोटि वंदन।
गुरु गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन।।-----×2
इसलिए हर सच्चे सेवक की सच्ची श्रद्धा सुमन अपने गुरुजी के प्रति समर्पित है इसलिए तो कहा है,
इना हो सेवक की गुरुजी, अरज गौसांई।-----×2
म्हारो आवागमन को बंधन, छुड़ाई हो दीजो।।------(4)
गुरु गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन।।-----×2
लाख-लाख वंदन तमने, कोटि-कोटि वंदन।
गुरु गम का सागर तमने लाख-लाख वंदन।।-----×2
Translation Welcome to this Guru Mahotsav festival of the year 2007. The Guru Mahotsav festival is being celebrated under the aegis of Sadguru Kabir Memorial Research Service Institute. We pay tribute to all the gurus. As Guru Vandana, We wants to present through saheb cassette. And on this festival, the words of Guru Vandana are devoted to you. In which that Guru ji connects with unhappiness and works to break the bitterness within and towards mankind and remove bitterness. In this program, this Guru Vandana is presented through Sahib Cassette,
Dhyanmulam Gurumurthy, Pujamoolam Gurupadan. Mantramulu Gurukavya, and Mokshamulan Gurukripa. And what will happen when the Guru is pleased? Without Guru knowledge neither yielded, and without Guru did not meet or salvation. Without Guru can't reach to truth, and without Guru, our sins will not melt. It is not possible to overcome the shortcomings and shortcomings of our lives till the true Sadhguru is found. And who is the true master? Which makes the sense of truth flow towards every human being, that is why Satguru Kabir has said, A Satguru is a Satbhav who can tell a difference.
Blessed luck like blessed head who finds such a fix. When such a master is found, and those who get such improvement, make such understanding, test and understanding in our life, then only our life will be blessed. But, there are many gurus in this world. Which also do the work of removing organisms in many ways. Whereas the work of the Guru, the work of saints, is to unite, not to add, not to break, not to distance from each other. Because the donor and the rivers are the same, and the same remains and the jewels belong to the master, that's why Sadguru Kabir has said, The donor rivers are equal, and give it to everyone. Hath Kumbh gives, The same fruit as it. We also have an obligation to remove our deficiencies, shortcomings and shortcomings. So Kabir says that, What should the poor teacher do as the disciple missed in students. Let go of the mood, as the bamboo blows. Therefore, the Guru is the ocean of sorrow, the ocean of realization, and works to improve the life of every human being. So our eighty-four lifes who are same as our four fingers, from my point of view. It is the job of the true Satguru to liberate him from it. And on this Guru festival of today, we should start the program of today's Guru Mahotsav through Guru Vandana. Millions of welcome you Guru, Billions of welcome.----- ×2 Thousand and millions of welcomes for the Guru.----- ×2 Why Millon's of Welcome, we are ignorant creatures, have come under the shelter of Guru, and Guru will remove the ignorance inside us, and will light the lamp of knowledge. So Kabir says that, Ignorance mind has come at your feet, Guruji.----- ×2 Please enlightened Lamp of knowledge in my mind Guruji.----- (1)
Thousand and millions of welcomes for the Guru.----- ×2
Millions of welcome you Guru, Billions of welcome.----- ×2 Thousand and millions of welcomes for the Guru.----- ×2 When the creature comes to the Guru's shelter by wandering in the eighty-four million vulva, he surely cuts the four hundred and eighty-four vulva, which is the subject of lust. That is why, Million of live of Chaurasi, This Mind has came after wandering.----- (2) This eighty-four live Guruji, Please let them left.----- ×2
Thousand and millions of welcomes for the Guru.----- ×2
Millions of welcome you Guru, Billions of welcome.----- ×2 Thousand and millions of welcomes for the Guru.----- ×2 Therefore, true Satgurus do the work of grooming the life of every human being, therefore it is a request and a prayer of this servant, Guruji, you saved me from to drown.----- ×2
Guruji, Please decorate my life this time.----- (3)
Thousand and millions of welcomes for the Guru.----- ×2
Millions of welcome you Guru, Billions of welcome.----- ×2 Thousand and millions of welcomes for the Guru.----- ×2 That is why the true devotion of every true servant is devoted to Suman, that is why he said, This servant request you Guruji, Arj Gausanai Please let you leave this bonding of this world.----- ×2
Thousand and millions of welcomes for the Guru.----- ×2
Millions of welcome you Guru, Billions of welcome.----- ×2 Thousand and millions of welcomes for the Guru.----- ×2
वैसे जब गुरु जी यहां बैठ जाते हैं तो हमारा डर खत्म हो जाता है
यह निश्चित है क्योंकि जब गुरुदेव का हाथ ऊपर रहता है तो किसी बात का डर नहीं रहता
और दूसरी बात यह है कि आप और हम सब गुरुदेव के चरणों में है ही
आपका आशीर्वाद आप और हम सब के ऊपर है तो फिर डर किस बात का
और वह डर इसलिए नहीं होगा क्योंकि गुरु जी ने आप और हम सब के बर्तनों को चकाचक कर दिया है इन 5 दिनों में
और ऐसे साफ कर दिए हैं की उसमें आप छाछ रखो या कुछ और रखो तो अब वह बर्तन खराब नहीं होंगे।
तो सदगुरु वह है जो आप और हम सब के बर्तनों को झालने का काम करते हैं चकाचक करने का काम करते हैं।
तो मैं आपको हमारे यहां की एक वास्तविक घटना बता रहा था
कि एक बार बर्तन झालने वाले आए और दो-तीन लोग थे वो पहले तो वह गांव में घूमे कि बर्तन साफ करवा लो बर्तन साफ करवा लो तो गांव की महिलाएं पीतल के बर्तन जो खराब हो जाते हैं वह लेकर आई कोई दो बर्तन लेकर आए कोई तीन बर्तन लेकर आए इस तरह से उनके पास एक थैला भर गया और वह ले गए और बोले कि 1 सप्ताह लगेगा तो गांव की महिलाएं बोली ठीक है भैया ले आना और वो लोग अगले शुक्रवार को आ गए और सभी के बर्तन दे दिए,
वह लोग बर्तन ऐसे झालकर लाए कि बिल्कुल चकाचक कर दिए
हमारे घर से भी एक तपेली दी थी तो घर वालों ने बताया कि देखो कैसी झाली तो मैंने कहा बहुत सुंदर है
तो बाद में कुछ बहने रह गई थी तो उन्होंने उन भैया से कहा कि भैया हमारे बर्तन तो कुछ रहे गए हैं तो उन लोगों ने कहा कि हमारा तो यही काम है बर्तन झालने का, आप लोग भी ले आना आपके बर्तन तो हमारी माता है बहनों ने उस दिन इतने बर्तन इकट्ठे करे कि एक मेटाडोर भर गई, तो उन लोगों ने कहा कि देखिए बर्तन बहुत सारे हैं तो हम इस शुक्रवार को नहीं अगले शुक्रवार को अर्थात 15 दिन में आएंगे क्योंकि इतने बर्तन झालने में समय लगेगा, तो माता बहना है बोली ठीक है
और वह बर्तन जो एक मेटाडोर भर कर ले गए वह आज तक आए ही नहीं
तो कम से कम ऐसे सतगुरु के सानिध्य में रहकर हम अपने मन रूपी बर्तन को चकाचक कर ले।
जब गुरुजी इस मन रूपी बर्तन को चकाचक कर दें तो किसी बात का डर नहीं रहता।
और यह तब होगा जब हम ऐसे नाम के दीवाने बन जाए।
कोई मत छेड़ो रे- गायक-प्रह्लाद सिंह जी टिपानिया भजन
हृदय माही आरसी, और मुख देखा नहीं जाए।
मुख तो तब ही देखिए, जब दिल की दुविधा जाए।।
मैं मरजीवा समुद्र का, ओर डुबकी मारी एक।
मुट्ठी लाया ज्ञान की, ता में वस्तु अनेक।।
नाम लिया तो सब लिया सब शास्त्रन को भेद।
बिना नाम नर्क में गया, पढ़-पढ़ चारों वेद।।
और जो ऐसे नाम का दीवाना बन जाए वह यही कहेगा कि अब आप दूर रहो मुझे मत छेड़ो।
कोई मत छेड़ो रे, आज मुझे कोई मत छेड़ो रे।
मैं तो दीवाना नाम का, मुझे कोई मत छेड़ो रे।।
मैं तो दीवाना भजन का, मुझे कोई मत छेड़ो रे।।
कोई मत छेड़ो रे, आज मुझे कोई मत छेड़ो रे।
दूर खड़े रहो रे, आज तुम अलग खड़े रहो रे।।
मैं दीवाना नाम का, मुझे कोई मत छेड़ो रे।
मैं तो दीवाना भजन का, मुझे कोई मत छेड़ो रे।।
कोई मत छेड़ो रे, आज मुझे कोई मत छोड़ो रे।
दूर खड़े रो रे, आज तुम दूर खड़े रहो रे।।
सत्य चार शमशेर हाथ में, मार बैठूंगा रे।।
मैं तो दीवाना भजन का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
मैं तो दीवाना नाम का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
गुरुजी कहते हैं,
मैंने अपना घर तो झाल लिया, औरों का झालुं रे।
जो कोई आता मुझे ढूंढता, जो कोई आता मुझे ढूंढता,
मैं उसी को तारु रे।।_____(1)
मैं तो दीवाना भजन का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
मैं तो दीवाना नाम का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
कोई मत छेड़ो रे, आज मुझे कोई मत छोड़ो रे।
दूर खड़े रो रे, आज तुम दूर खड़े रहो रे।।
मैं तो दीवाना भजन का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
मैं तो दीवाना नाम का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
हाथी के इंसाफ से, मैंने शेर को घेरा रे।
हाथी के इंसाफ से, मैंने बाघ को घेरा रे।
इसी को फिरता ढूंढता, मैं इसी को फिरता ढूंढता।
वन-वन पुकारूं रे।।_____(2)
मैं तो दीवाना नाम का, मुझे कोई मत छेड़ो रे।
मैं तो दीवाना भजन का, मुझे कोई मत छेड़ो रे।।
कोई मत छेड़ो रे, आज मुझे कोई मत छोड़ो रे।
दूर खड़े रो रे, आज तुम दूर खड़े रहो रे।।
सत्य चार शमशेर हाथ में, मार बैठूंगा रे।।
मैं तो दीवाना भजन का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
मैं तो दीवाना नाम का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
पूरण प्याला प्रेम का, यह अगम से आया रे।
पूरण प्याला प्रेम का, यह अगम से आया रे।
भर पिया कबीर ने, कमाल को पाया रे।।
भर पिया कबीर ने, सतनाम को पाया रे।।_____(3)
मैं तो दीवाना नाम का, मुझे कोई मत छेड़ो रे।
मैं तो दीवाना भजन का, मुझे कोई मत छेड़ो रे।।
कोई मत छेड़ो रे, आज मुझे कोई मत छोड़ो रे।
दूर खड़े रो रे, आज तुम दूर खड़े रहो रे।।
सत्य चार शमशेर हाथ में, मार बैठूंगा रे।।
मैं तो दीवाना भजन का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
मैं तो दीवाना नाम का, मुझे कोई मत छोड़ो रे।।
Pujyavar Gurudev Ji has been seated on the seat
By the way, when Guru ji sits here, our fear is over.
This is certain because when Gurudev's hand is up, there is no fear of anything
And the other thing is that you and all of us are at the feet of Gurudev
Your blessings are on us and all of us, so what are you afraid of?
And that fear will not happen because Guru ji has dazzled you and all of us in these 5 days.
And you have made it clear that if you keep buttermilk or something in it, then those dishes will not be spoiled.
So Sadhguru is the one who does the work of throwing the utensils of you and all of us in the process of smoothing.
So I was telling you a real incident here
That once the utensils came and there were two or three people, they first went around the village to get the utensils cleaned and get the utensils cleaned, then the women of the village brought the brass utensils that were spoiled, some brought with them Three bags were brought in this way, one bag was filled with him and he took it and said that it will take 1 week, then the women of the village said, bring it right brother and those people came next Friday and gave all the utensils,
Those people brought the utensils in such a way that it was very tasty
A Brass pot was also given from our house, then the people of the house told that look, how did I look so beautiful.
So later something was left flowing, so he said to his brother that brother, our utensils have been some, so those people said that it is our job to throw utensils, you guys also have to bring your utensils, our mother and sisters. Had gathered so many utensils on that day that a matador was full, then those people said, see if there are many utensils, then we will come on this Friday not in the next Friday i.e. in 15 days because it will take time to release so many utensils, then the mother is flowing. Quote ok
And the utensils which were filled with a matador did not come till today.
So, at least by staying in the company of such a Satguru, we should chop our pot of mind.
There is no fear of anything when Guruji chooses this vessel of mind.
And this will happen when we become crazy about such a name.
Don't disturb me
There, and the face is not seen.
Only see when the dilemma of the heart goes.
I plunged one towards the sea, alive.
Fist brought knowledge, many things in Ta.
If you take a name, everyone takes a distinction between all scriptures.
He went to hell without his name, read all four Vedas.
And anyone who becomes crazy about such a name will say that now you stay away, don't tease me.
Nobody teases me, do not tease me today.
I am crazy about you, do not tease me.
I am crazy about hymns, do not tease me.
Nobody teases me, do not tease me today.
Stand far away, today you stand apart.
I am crazy about someone, do not tease me.
I am crazy about hymns, do not tease me.
Nobody teases me, do not leave me today.
Stand far away, today you stand far away.
Satya Char Shamsher in hand, will kill you.
I am crazy about hymns, do not leave me.
I am crazy about you, do not leave me.
Guruji says,
I have clean my house, and I have seen for others.
Whoever comes to find me, whoever comes to find me,
I will overcome them all from bhavasagar._____(1)
I am crazy about someone, do not tease me.
I am crazy about hymns, do not tease me.
Nobody teases me, do not leave me today.
Stand far away, today you stand far away.
I am crazy about hymns, do not leave me.
I am crazy about you, do not leave me.
With the justice of the elephant, I surrounded the lion.
With the justice of the elephant, I surrounded the tiger.
I used to find this wandering, I used to find this.
Singer: Prahlad Singh ji Tipaniya इस भौतिक संसार के जितने भी रिश्ते नाते हैं, ये सब स्वार्थ के हैं इसलिए पाप और पुण्य के बीच में किस को चुने, यह देख ले इसीलिए एक साधक ने इस तरह से कहा है सुन ले रे प्राणी रे तेरे साथ ना जाए कोई... स्वांस सफ़ल जो जानिए, जो सुमिरन में जाए। और स्वांस यूं ही गए, और कर कर बहुत उपाय।। कहां भरोसा देह का, और बिनस जाए क्षण माय। स्वांस-स्वांस सुमिरन करो और जतन कुछ नाय।। सुन ले रे प्राणी रे तेरे साथ ना जाए कोई... कंचन काया, की ये नगरी पुण्य उदय से पाई, प्राणी रे... हो...स्वांस का पंछी जब उड़ जाये, पछताए क्या होय, तेरे साथ ना जाए कोई।_____(1) सुन ले रे प्राणी रे तेरे साथ ना जाए कोई... हाँ...मेहनत करके, बाग लगाया, फिर भी फल ना पाया, प्राणी रे... हो...बीज जहां शूलों के बोए, फल कहाँ से होय, तेरे साथ ना जाए कोई।_____(2) सुन ले रे प्राणी रे तेरे साथ ना जाए कोई... भाई बंधु, कुटुंब कबीला, जिते जी के साथी, प्राणी रे... हो...इस भंवर पर भव के साथी, पाप पुण्य ही होय, तेरे साथ ना जाए कोई।_____(3) सुन ले रे प्राणी रे तेरे साथ ना जाए कोई... आत्म निर्मल, हो जाए कछु, एसी करनी करले, प्राणी रे... हो...कहे गुरुजी प्रभु की भक्ति से, मुक्ति मिलेगी तोहे, तेरे साथ ना जाए कोई।_____(4) सुन ले रे प्राणी रे तेरे साथ ना जाए कोई... All of this material world Relationships, all of them are selfish So between sin and virtue See who I choose, that's why This is how a seeker said Listen to me No one can come with you ... Know what is successful Who goes to Sumiran. And the breath went like this, And tax is a lot of measures. Where trust body, And ends in a moment. Breathe breath And Jatan koi nayi. Listen to me No one can come with you ... Kanchan Kaya(Like Golden Life), this city Received by virtue of rising, the creature ... Ho ... When the bird of the fly flies, What are you regretting No one can go with you. _____ (1) Listen to me No one can come with you ... Yes ... working hard, planting a garden, Still not able to bear fruit, the creature ... Ho ... the seed where the sows are sown, Where are the fruits from? No one can go with you. _____ (2) Listen to me No one can come with you ... Brother brothers, family clan, Jite ji's companion, the creature ... Ho ... Bhava's partner on this vortex, Sin is a virtue, No one can go with you. _____ (3) Listen to me No one can come with you ... Self-refined, become something I want to live like that Ho… Say Guruji’s devotion to God, You will get liberation, No one can go with you. _____ (4) Listen to me No one can come with you .. MORE BHAJAN 1.अमिया झरे हो साधो अमिया झरे Amiya Jhare Ho Saadho 2.गोविन्दो गायो नहीं Govindo Gaayo Nahi 3.हर हर मारुंगा Har Har Marunga 4.जाओ जो जाओ जो रे Jao Jo Jao Jo Re 5.गुरु जी बिना कोई काम नी आवे Guru Ji Bina Koi Kaam Ni Aave 6.सतगुरु देव मनाया Satguru Dev Manaya 7. कोई मत छेड़ो रे Koi Mat Chedo Re 8. लाख लाख वंदन Laakh Laakh Vandan