Tuesday, July 21, 2020

पीले अमीरस धारा Peele Amigas Dhara by Prahlad Singh ji Tipaniya

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी। 
Peele Amiras Dhara, Gagan Me Jhadi Lagi
गायक-प्रह्लाद सिंह जी टिपानिया भजन
Singer: Prahlad Singh ji Tipaniya 

बिना सूरज ओर चांद के प्रकाश हो, एसी भूमिका पर जाने पर उसे सभी ओर
वही(भगवान) दृष्टिगोचर होता है। परन्तु  यह तभी संभव है, जब हमें सतगुरु के द्वारा उस अमृतमयी धारा का पान करवाया जाए। और जीवमात्र की प्यास बुझाई जाये। यहाँ पर सतगुरु कबीर ने इस तरह से कहा है।

अमृत केरी मोठरी, राखो सतगुरु छोर।
आप सरिका जो मिले, ताही पिलावे छोड़।।

अमृत पीवे ते जणा, सतगुरु लागा कान।
वस्तु अगोचर मिल गई, मन नहीं आवे आन।।

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

बुंद का प्यासा, घड़ा भर पाया।
सपने में वो, स्वाद न आया।।

कोई किसे, कैसे समझाए।
एक बुंद की तरण(प्यास) लगी।।_____(1)

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

प्यास बिना क्या, पीवे है पानी।
प्यास अकेली, ये है वो पानी।।

बिना अधिकार, कोई नहीं जानी।
अमृत रस की, झड़ी लगी।।_____(2)

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

आमीरस पीवे, ऊमर पद पावे।
भवयोनी में, कभी नहीं आवे।।

जरा-मरण का दुख नसावे।
घट की गगरिया भरण लगी।।_____(3)

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

बून्द अमीरस गुरु जी की वाणी।
जीवन रास्ता है, यह पानी।।

कबीर संगत में, हो हमारी।
डाली प्रेम की हरी लगी।।_____(4)

पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।

झड़ी लगी, यहाँ झड़ी लगी।
पीले अमीरस धारा, गगन में झड़ी लगी।।

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