Sunday, May 9, 2021

वो सुमिरण एक न्यारा है Wo Sumiran Ek Nyara Hai Kabir Bhajan Lyrics

 

सुमिरण की सुध युं करो,

ज्यों गागर पणिहार

हाले डोले सुरत में,

कहे कबीर विचार

सुमिरण सुरती साध के,

मुख से कछु नहीं बोल

तेरे बाहर के पट देई के,

ओर अन्तर के पट खोल

 

वो सुमिरण एक न्यारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

हाँ, वो सुमिरण एक न्यारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

हाँ, जिस सुमिरण से पाप कटे है

होवे भव जल पारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

वो सुमिरण एक न्यारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

माला न कर मुख जिव्ह्या ना हाले

आप ही होत उच्चारा है

सब ही के घट रचना रे लागी

क्युं नहीं समझे गंवारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

वो सुमिरण एक न्यारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

हाँ, जिस सुमिरण से पाप कटे है

होवे भव जल पारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

हाँ, अखण्ड तार टुटे नहीं कबहु

सोहंग शब्द उच्चा रा है

ज्ञान आंख मोरे सतगुरु खोले

 

जानेगा जाननहारा, रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

वो सुमिरण एक न्यारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

 

हाँ, जिस सुमिरण से पाप कटे है

होवे भव जल पारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

पुरब पश्चिम उत्तर दक्षिण

चारो दिशा में पचहारा है

कहे कबीर सुनो भाई साधो

शब्द ले टकसारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

वो सुमिरण एक न्यारा रे संतो

वो सुमिरण एक न्यारा है

हाँ, वो सुमिरण एक न्यारा है